Sunday, 14 September 2025

राष्ट्रीय स्वार्थी संघ का दोगलापन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दोगलापन: राष्ट्रवाद और संस्कृति के नाम पर दोहरा मापदंड

भारत में जब भी राष्ट्रवाद, संस्कृति या नैतिकता की बात होती है, तो एक नाम स्वतः ही चर्चा में आ जाता है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)। स्वयं को सांस्कृतिक संगठन बताने वाला संघ, दरअसल भारतीय राजनीति और समाज को नियंत्रित करने वाला सबसे शक्तिशाली वैचारिक केंद्र बन चुका है। इसके अनुशांगिक संगठनों में भाजपा, विहिप, बजरंग दल आदि शामिल हैं, जो अक्सर राष्ट्रवाद, लव जिहाद, भारतीय संस्कृति, संस्कारों और नैतिक मूल्यों पर उपदेश देते हैं। लेकिन जब इन मूल्यों की परीक्षा खुद संघ और इसके लोगों पर आती है, तो दोगलापन साफ नजर आता है।

1. फर्जी राष्ट्रवाद और क्रिकेट की राजनीति

भारत-पाकिस्तान के बीच हुए हर आतंकी हमले के बाद एक बात हमेशा सुनने को मिलती है: "हम पाकिस्तान से क्रिकेट क्यों खेलें?" यही बात संघ के विचारकों, भाजपा नेताओं और टीवी डिबेट्स में दिन-रात दोहराई जाती रही है। लेकिन इस बार, जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में सेना के जवानों पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें कई जवान शहीद हुए, तो मात्र कुछ दिनों के बाद ही भारत ने पाकिस्तान के साथ एशिया कप में मैच खेला।

यहाँ सवाल उठता है – क्या पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना अब राष्ट्रवाद नहीं है?

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के प्रमुख कौन हैं? जय शाह – गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र और BCCI के सचिव। यानी भारतीय क्रिकेट की नीति-निर्माण प्रक्रिया उन्हीं के हाथ में है, जो सरकार का हिस्सा हैं। अगर सरकार चाहे, तो भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाला कोई भी कदम उठा सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके उलट, जब इसी मुद्दे पर सवाल उठाए गए, तो संघ के विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा टीवी डिबेट में मुस्कराकर टालने की कोशिश करते हैं।

कल्पना कीजिए, अगर यही घटना कांग्रेस शासन में होती, और राहुल गांधी ICC के प्रमुख होते, तो संघ और भाजपा के नेता पूरे देश में हंगामा मचा देते। “देशद्रोही,” “गद्दार,” “टुकड़े-टुकड़े गैंग” जैसे जुमले गूंजने लगते।

यह है संघ का फर्जी राष्ट्रवाद – जहाँ राष्ट्रवाद का उपयोग केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, और जब बात अपने लोगों की आती है तो सारे आदर्श ताक पर रख दिए जाते हैं।


2. ‘संस्कार’ का दिखावा और नेताओं की पारिवारिक तस्वीरें

संघ अपने स्वयंसेवकों को "संस्कार," "मर्यादा" और "भारतीय संस्कृति" का पाठ पढ़ाता है। टीवी चैनलों पर संघ समर्थक और विचारक अक्सर यह कहते हैं कि "पश्चिमी संस्कृति ने हमारी युवा पीढ़ी को बिगाड़ दिया है।" खासकर जब बात महिलाओं के पहनावे की आती है, तो संघ के वैचारिक संगठन जैसे बजरंग दल युवाओं को पीटते नजर आते हैं – चाहे वो वेलेंटाइन डे पर पार्क में बैठे जोड़े हों या कॉलेज के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती छात्राएं।

लेकिन इसी संघ-प्रेरित भाजपा के महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की पत्नी अमृता फड़नवीस का व्यवहार इस कथित संस्कृति से मेल नहीं खाता।

  • अमृता फड़नवीस स्किन-टाइट ड्रेसों में फैशन शो और पेज-3 पार्टियों में शिरकत करती हैं।

  • इंस्टाग्राम पर वह रील्स बनाती हैं, जिनमें कभी इन्फ्लुएंसर रियाज अली जैसे युवाओं के साथ ठुमके लगाए जाते हैं, तो कभी गानों पर लिप-सिंक किया जाता है।

  • सीएम आवास जैसे एक सरकारी और प्रतिष्ठित स्थान को ‘रील स्टूडियो’ में बदल देना – क्या यही “भारतीय संस्कार” हैं?

अब सवाल यह है – अगर यही काम किसी कांग्रेस नेता की पत्नी करती, तो क्या संघ और बजरंग दल की प्रतिक्रिया इतनी ही शांत होती?

कथित “लव जिहाद” पर उपदेश देने वाले संगठन, जो पार्कों में प्रेमी जोड़ों को पीटते हैं, वे अमृता फड़नवीस के इंस्टाग्राम पर चुप क्यों हैं? क्या स्किन टाइट कपड़े केवल तब अश्लील होते हैं जब उन्हें कोई आम लड़की पहनती है, और अगर कोई भाजपा नेता की पत्नी वही पहनती है तो वह "मॉडर्न" हो जाती है?

यह दोगलापन एक बहुत बड़े सवाल को जन्म देता है – क्या संघ के संस्कार सिर्फ आम जनता के लिए हैं, और नेताओं के परिवार इसके बाहर हैं?


संघ का दोहरा चेहरा: विचारधारा या अवसरवाद?

संघ और उसके संगठनों की राजनीति विचारधारा से कम और राजनीतिक अवसरवादिता से अधिक संचालित होती है। जब किसी मसले को उछालकर वोट बटोरे जा सकते हैं, तो वह "संस्कृति की रक्षा" बन जाता है। लेकिन जब वही काम अपने ही लोग करते हैं, तो सब चुप्पी साध लेते हैं।

  • जब दीपिका पादुकोण ‘पठान’ में भगवा बिकिनी पहनती है, तो पूरे देश में विरोध होता है।

  • लेकिन जब कंगना रनौत उसी रंग में फोटोशूट करवाती हैं, तो वह "संस्कृति की रक्षक" बन जाती है।

यही मापदंड RSS की विचारधारा को संदिग्ध बनाते हैं। इसका "हिंदू राष्ट्र" का सपना उस समय बेमानी हो जाता है, जब राष्ट्रवाद और संस्कृति के मुद्दों को केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रयोग किया जाता है।


लोकतंत्र में जवाबदेही जरूरी है

हर संगठन को अपनी विचारधारा रखने का हक है, लेकिन जब वह विचारधारा दोहरे मापदंडों पर खड़ी हो, तो उसका विरोध होना भी जरूरी है। संघ अगर सच में राष्ट्रवाद और संस्कृति की रक्षा करना चाहता है, तो उसे पहले अपने भीतर झांकना होगा।

  • जय शाह के जरिए क्रिकेट की राजनीति और पाकिस्तान से मैच – राष्ट्रवाद या परिवारवाद?

  • अमृता फड़नवीस की गतिविधियाँ – संस्कार या पाखंड?

  • प्रेमी जोड़ों पर हमले – संस्कृति की रक्षा या गुंडागर्दी?

जब तक इन सवालों के जवाब नहीं दिए जाते, तब तक RSS की विचारधारा सिर्फ एक ढकोसला ही नजर आएगी।


निष्कर्ष: सत्य से भागना बंद कीजिए

संघ को यह समझना होगा कि 21वीं सदी का भारत अब आँख मूंदकर किसी की बातों पर यकीन नहीं करता। सोशल मीडिया के जमाने में हर दोहरा मापदंड जनता के सामने उजागर होता है। आप चाहे जितना भी राष्ट्रवाद का नकाब पहनें, जब आपके ही लोग उसकी धज्जियाँ उड़ाते हैं, तो आपकी वैचारिक साख खत्म हो जाती है।

इसलिए, या तो अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहिए – चाहे वो कोई भी हो – या फिर ये दोगलापन छोड़ दीजिए। नहीं तो इतिहास आपको पाखंडी कहकर याद रखेगा।

Labels: , ,

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home